Tuesday 23 May 2017
Wednesday 12 April 2017
मन से मानव की दीर्घ बुद्दी
मानव मन के चमकते सितारे
सुबह हुई, शाम ढली,
मौसम बदले, साल गए, देख, मैं वही हूँ,
मजबूत इरादे, अंदाज वही हूँ,
सुनो मुझे, आवाज़ वही हूँ,
हां वही हूँ, देख यही हूँ.
शोर नही हूँ, कोई और नही हूँ,
एक मछली हूँ, बेख़ौफ नही हूँ.
फिर भी, देख, यही हूँ,
देख वही हूँ!
मौसम बदले, साल गए, देख, मैं वही हूँ,
सुरज की तरह मैं वही हूँ.
ना चांद की तरह रोज़ बदला,
ना बादल की तरह आया और गया,
देख, उँची चट्टान की तरह वही हूँ.
आंखें निर्दोष है, बाज नही हूँ,
बंजर होकर भी रेगिस्तान नही हूँ,
देख, फुलो में खुशबू की तरह वही हूँ.मजबूत इरादे, अंदाज वही हूँ,
सुनो मुझे, आवाज़ वही हूँ,
हां वही हूँ, देख यही हूँ.
शोर नही हूँ, कोई और नही हूँ,
एक मछली हूँ, बेख़ौफ नही हूँ.
फिर भी, देख, यही हूँ,
देख वही हूँ!
Monday 30 January 2017
Subscribe to:
Posts (Atom)
आत्म विश्वास
आत्म विश्वास जो आइएएस की परीक्षा में पास नहीं हुए | जो बारहवीं में फेल हो गये क्या वे सब बच्चे बेवकूफ ,बेकार और बेकाम के हैं ? यह शिक्...